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  • 15th October 2024

भारत माँ की करुण पुकार: आज़ादी के वीरों से संवाद और आज के स्वतंत्र भारत का सच

आज़ादी का वह ऐतिहासिक क्षण जब भारत माँ ने अपने वीर जवानों को गर्व से देखा, वह पल आज भी हमारे दिलों में ज़िंदा है।आज से 78 साल पहले, भारत माँ ने अपने वीर सपूतों को आशीर्वाद दिया था, जब उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को स्वतंत्रता दिलाई। लेकिन आज, 78 साल बाद, क्या वही गर्व आज भी कायम है? क्या भारत माँ अब भी अपने वीरों से वही बातें कह सकती हैं? यह ब्लॉग उस दर्द और पीड़ा को सामने लाता है, जो भारत माँ आज महसूस कर रही हैं।

आज़ादी के समय का संवाद:

यह कविता उन पलों को जीवंत करती है, जब हमारे वीर जवानों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर देश को आज़ादी दिलाई थी।

स्वतंत्रता की वह घड़ी जब भारत माँ ने अपने वीर जवानों को अपने आशीर्वादों और गर्व भरी नजरों से देखा, वह हर भारतीय के दिल में बसती है। कविता की पंक्तियाँ हमें उस क्षण की याद दिलाती हैं जब आज़ादी के सूरज ने हमारी धरती पर अपनी किरणें बिखेरी थीं।

जब भारत आज़ाद हुआ, तो भारत माँ ने अपने वीर जवानों को गर्व से कहा:

भारत माँ गर्व से अपने वीरों को देख रही थीं। उन्होंने देखा कि उनके बेटों ने धर्म और जाति के बंधनों को तोड़ते हुए एक नए भारत का निर्माण किया। हर धर्म, हर वर्ग को सम्मान मिला और महिलाओं को घर से निकलने की आज़ादी मिली।

महान नेता गांधी, नेहरू, भगत सिंह, सुखदेव, और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदानों को भी देश ने सम्मान दिया।

78वें स्वतंत्रता दिवस पर भारत माँ का दर्द:

परन्तु आज, 78 साल बाद, भारत माँ की आँखों में आँसू हैं। वह देखती हैं कि कैसे उनके सपूतों के बलिदान की माटी पर अपनों का ही खून बह रहा है। धर्म के नाम पर देश का विभाजन, बहन-बेटियों का असुरक्षित होना, आज, भारत माँ का दिल दर्द से भरा हुआ है। उन्होंने देखा कि जिस देश को उनके वीरों ने आज़ाद कराया था, वह आज विभाजित हो चुका है। धर्म के नाम पर अपनों का तिरस्कार हो रहा है, और बेटियों का सम्मान खतरे में है।और समाज में बढ़ते अत्याचार ने उनके हृदय को छलनी कर दिया है।आज का भारत वह नहीं है जिसके लिए हमारे वीरों ने अपने प्राण दिए थे। जिस आज़ादी की लड़ाई में भाईचारे, समानता और सम्मान के मूल्य थे, वे आज कहीं खो गए हैं।

यहाँ तक कि शिक्षक, जो समाज का मार्गदर्शक होता है, अब हैवान बन चुका है। हाल ही में कई खबरें सामने आई हैं, जहां शिक्षा के मंदिर में ही छात्र-छात्राओं का शोषण हुआ है। ये घटनाएँ समाज को अंदर से झकझोर कर रख देती हैं और यह सवाल उठाती हैं कि क्या यही वह भारत है जिसका सपना स्वतंत्रता संग्राम के नायकों ने देखा था?

प्रेरणा और आगे का मार्ग:

अब समय है कि हम अपने भीतर झांकें और देखें कि हम कहाँ चूक गए। यह कविता हमें पुनः जगाने और उन मूल्यों की रक्षा के लिए प्रेरित करती है, जो हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नायक हमें सौंप कर गए थे।

क्या हम उन मूल्यों को जीवित रख पा रहे हैं जिनके लिए हमारे वीरों ने अपने प्राण दिए थे? क्या आज का भारत सच में स्वतंत्र है? क्या हमने उस आज़ादी का सही अर्थ समझा है?

भारत माँ की यह पुकार हमें जागृत करती है, हमें उस सच्चाई से अवगत कराती है जो हमने अनदेखी कर दी थी। अब हमें उन आदर्शों की ओर लौटना होगा, जिन्होंने हमें स्वतंत्रता दिलाई थी। यह कविता और ब्लॉग एक कड़ा संदेश देता है—यदि हम सच में आज़ाद होना चाहते हैं, तो हमें अपने भीतर झांकना होगा और उन मूल्यों को पुनः स्थापित करना होगा, जिनके लिए हमारे वीरों ने अपने प्राण दिए थे।